मनोरंजक कथाएँ >> आदिवासियों की कहानियाँ आदिवासियों की कहानियाँश्रीचन्द्र जैन
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इसमें आदिवासियों की कहानियों का उल्लेख किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बिना हाथों का आदमी
किसी गाँव में एक खैरबार रहता था। वह बहुत ग़रीब था। भरपेट खाना भी उसे
नहीं मिलता था। उसने अपने दोनों हाथों को एक कौल के यहाँ गिरवी (रहन) रख
दिया। अब वह बिना हाथों का हो गया। कौल से जो कुछ रुपये उसने लिये थे,
उन्हें वह खा-पी गया। परेशान होकर वह एक कुम्हार के पास गया और बोला,
‘‘भाई कुम्हार ! मैं बहुत गरीब हूँ। तुम्हारे यहाँ
नौकरी करना
चाहता हूँ। जो काम तुम बताओगे, मैं करूँगा। मुझे तुम खाना दिया
करो।’’
कुम्हार ने कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ ही नहीं हैं, फिर तुम क्या काम करोगे ? पर खैर, जाओ, तुम जंगल में सूखे कंडे बीन लाओ।’’
खैरबार जंगल में गया और एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा। जंगल में भगवान् शंकर पार्वती के साथ घूम रहे थे। खैरबार के रोने की आवाज सुनकर वे उसके पास आ गये और बोले, ‘‘तू क्यों रोता है ? तेरे हाथ कहाँ गए ?’’
खैरबार ने कहा, ‘‘महाराज ! मैंने अपने दोनों हाथों को एक कौल के यहाँ दस रुपये में गिरवी रख दिया है। अब मैं कुम्हार के यहाँ नौकर हूँ। उसने मुझे कंडे बिनने के लिए यहाँ भेजा है। मैं कैसे कंडे बिनूँ।’’
भगवान् शंकर को खैरबार पर दया आ गई। उन्होंने तेज हवा चलाकर जंगल के सूखे कंडों को खैरबार के सामने इकट्ठा करवा दिया। कंडों का ढेर देखकर खैरबार प्रसन्न हुआ और भगवान् शंकर की जय-जयकार करने लगा। वह दौड़ता हुआ कुम्हार के पास गया और बोला, ‘‘जंगल में कंडों का ढेर लग गया है। गाड़ियाँ भेजो। मैं अकेला नहीं ला सकता हूँ।’’
कुम्हार ने कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ ही नहीं हैं, फिर तुम क्या काम करोगे ? पर खैर, जाओ, तुम जंगल में सूखे कंडे बीन लाओ।’’
खैरबार जंगल में गया और एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा। जंगल में भगवान् शंकर पार्वती के साथ घूम रहे थे। खैरबार के रोने की आवाज सुनकर वे उसके पास आ गये और बोले, ‘‘तू क्यों रोता है ? तेरे हाथ कहाँ गए ?’’
खैरबार ने कहा, ‘‘महाराज ! मैंने अपने दोनों हाथों को एक कौल के यहाँ दस रुपये में गिरवी रख दिया है। अब मैं कुम्हार के यहाँ नौकर हूँ। उसने मुझे कंडे बिनने के लिए यहाँ भेजा है। मैं कैसे कंडे बिनूँ।’’
भगवान् शंकर को खैरबार पर दया आ गई। उन्होंने तेज हवा चलाकर जंगल के सूखे कंडों को खैरबार के सामने इकट्ठा करवा दिया। कंडों का ढेर देखकर खैरबार प्रसन्न हुआ और भगवान् शंकर की जय-जयकार करने लगा। वह दौड़ता हुआ कुम्हार के पास गया और बोला, ‘‘जंगल में कंडों का ढेर लग गया है। गाड़ियाँ भेजो। मैं अकेला नहीं ला सकता हूँ।’’
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